Wednesday, October 21, 2009

गोनू झाक मादे


हमरा गोनू झाक मादे किछु नहि कहबाक अछि | गोनू झा स्वयं एक टा चरित्र छथि जे अपने खिस्सामे बहुत किछु कहि जाइत छति |

गोनू झा कोनो खिस्सा नहि लिखलनि | हुनकर सम्पूर्ण जीवने एहन-एहन विशेषतासं भरल - पुरल छल जे ओ खिस्सा बनि गेल | आ जे खिस्सा एखन मिथिलाक गाम - गाममे बूढ - पुरनियांसं सुनल जा सकैछ, प्रसंगवश कोनो उदहारणमें प्रयोग होइत देखल जा सकैछ |

अपन देशमें एहि चरित्रसं मिलैत - जुलैत बहुतो चरित्रक खिस्सा प्रचलित अछि. जाहिमे प्रचलित अछि बीरबल, तेनालीराम, गोपाल भीड़, देवन मिसर, आदि | मुदा गोनू झा एहि सभसँ भिन्न छथि | हिनक खिस्सामें अलगटटे चिन्हल जा सकैछ, कारण एहि खिस्सा सभक ह्रदय रहैत छैक धुर्तई | आ तें गोनू झाकें ' धूर्त - शिरोमणि ' क विशेषणसं अभिहित कयल जाइत अछि | गोनू झा वीरबल, तेनालीराम, गोपाल भांड, अथवा अन्य अन्य परिचित चरित्रसं भिन्न रहने एखनो जीवित छथि |

गोनू झाक ई चरित्र - कथा कतहु लिपिदिध नहि अछि | एही कथा सभकें मिथिलामें कहबाक परम्परा रहल अछि | आ जे नाटकक एक उपांग ' एकालाप ' सदृश होइछ | कथा कहबा काल कथावाचक किछु बात तं शब्दशः कहैछ मुदा बहुत रास बात ओकर भाव - भंगिमा द्वारा अभिव्यक्त होइछ | आ सैह भावः - भंगिमा गोनू झाक चरित्र - कथाक चमत्कार अछि | अर्थात् जखन कथामे निहित धुर्तई आ कथा वाचकक भावः - भंगिमा संगमे होइछ तखने गोनू झाक असली कथाक सागर लहरा उठैछ |

माँ कालीक आशीर्वाद


मिथिलामे माँ काली शक्तिक अवतार मानल जाइत छथि | गोनू झा हुनकहि उपासक छलाह | हुनक उपासना कयलाक बादहि ओ कोनो आन काज करैत छलाह | तेँ हुनका प्रत्येक काजमे सफलता भेटैत छलनि |

एक दिन गोनू झा निशचय कयलनि जे, जेना हो, माँ कालीक दर्शन कायल जाय | एहि लेल ओ निरन्तर हुनक आराधना करय लगलाह | काली प्रसन्न भेलथिन आ निशचय कयलनि जे साक्षात् दर्शन देबासँ पूर्व गोनू झाक साहसक परीक्षा लेल जाय |

एक राति गोनू झा सूतल रहथि | निसभेर रातिमे माँ कालीक दर्शन देलथिन | हुनकर रूप विकराल छल | एक सय मुहँ रहनि मुदा हाथ दुइये टा | गोनू बाबू हुनकर ई रूप देखि कनिको विचलित नहि भेलाह | ओ पहिने तs हुनका प्रणाम कयलनि मुदा गोनू ठठाकs हँसि पड़लाह |

माँ कालीककेँ विशवाश रहनि जे हुनकर ई भयंकर रूप देखि गोनू झा विचलित भs उठताह, मुदा हुनका हँसैत देखि पुछलथिन - " की, हमर ई रूप देखि अहाँकेँ डर नै भेल? "

गोनू झा कहलथिन - माँ बाघसँ डर होइत छैक मुदा ओकर बच्चा ओकरासँ कनेको नहि डराइत अछि, अपितु ओकरा देह पर कदैत - फनैत रहैत अछि | तखन अहीं कहू जे अहाँ सँ अहाँक नेनाकेँ डर लगतै? "

माँ काली कहलथिन - " गोनू अहाँक मन्तव्य एकदम सत्य अछि | मुदा ई तs कहू जे हमरा देखि अहाँकेँ हँसि कियक लागि गेल? "

गोनू झाक उत्तर भेलनि - " हे माँ हमरा मात्र एक मुहँ आ एक नाक अछि, मुदा दु टा हाथ रहितो सर्दी भेला पर नाक पोछैत - पोछैत फिरीसान रहैत छी " |

- " अहाँ कहs की चाहैत छी ? "

- " अहाँकेँ एक सय मूँह आ एक सय नाक अछि, मुदा हाथ दुइये टा | हमरा चिन्ता भs गेल जे सर्दी भेला पर अहाँ अपन नाक सभ कोना पोछैत होयब | आ यैह कल्पना करैत हमरा हँसी लागि गेल " |

एकटा छला गोनू झा

गोनू झाक ई परिहास सुनि माँ काली से हो हँसि पड़लीह आ बजलीह - " गोनू' अहाँ बुधियार भक्त छी | हमरो अहाँ नहि छोड़लहूँ | जाउ हमर आशीर्वाद अछि जे आहाँकेँ धूर्ततामे क्यो नहि हरा सकँए | "

पिताक आशीर्वाद


गोनू झाक पिताकेँ ज्योतिषी लोकनिसँ हाथ देखेबाक बड़ सौख रहनि | दूर दूरसँ हस्तरेखा देखनिहार आबथि आ हुनका बूडि बना पाइ ऐंठी, विदा भs जाइत छलाह |

एक दिन गोनू झाकेँ किछु पैसाक आवश्यकता छलनि | ओ अपन पितासँ छलनि | ओ अपन पितासँ पाइ मँगलनि मुदा पिता पाइ देब अस्वीकार कs देलथिन | तखन गोनू झा हुनक दुर्वलतासँ लाभ उठ्यबाक व्योंत लगओलनि | आ एकटा नाटक मंडलीमे गेलाह | ओतsसँ गेरुआ वस्त्र, जटा आ एकटा कमण्डल भाड़ा पर लs अनलनि | पशचात ओ गेरुआ वस्त्र पहिरलनि, माथ पर जटा जगओलनि, देहमे विभूति लेपलनि तथा हाथमे कमण्डल धारण कs अपन घरक मुहँथरि पर पहुँचि गेलाह | महात्मा बुझि गोनू झाक पिता हुनका बड़ आदरसँ बैसओलनि आ पुछ्लनि - " महाराज, कतs आगमन भेलैक अछि? "

महात्माजी मुहँ पर आंगुर राखि स्वयंकेँ यौनी बाबा कहलनि आ इशारासँ बुझओलानी जे हम सिलेट - पाटी पर लिखिकs गप्प करब |

गोनू झाक पिता महात्माजीकेँ नीक - निकुत भोजन करओलनि | तदुपरांत अपन भाग्यक मादे जिज्ञासा कयलनि |

महात्माजी गोनुझाक पिताक - आगू - पाछंक सम्पूर्ण खेढ़ा कहि देलथिन | ओ ई सुनि गद् - गद् भs गेलाह तथा महात्माजीकेँ दक्षिणास्वरुप बहुत रास धन एवं एकटा औंठी प्रदान कयलनि |

एम्हर महात्माजीक भविष्यवाणी पर सम्पूर्ण गाममे हल्ला मचि गेल | सभ अपन - अपन भाग्य पुछबाक लेल हुनका लsग आबs लागल |

महात्माजी सभक वखान करैत धन बटोरय लगलाह | किछुए दिनमे बहुत रासधन एकट्ठा भs गेलनि आ ओ ओतsसँ डेरा तोड़लनि | गामसँ बहरा ओ अपन हुलिया बदललनि आ अपन वास्तबिक भेषमे आबि गेलाह | महात्माक भेषके नाटक - मंडलीकेँ सुपुर्द कs किछु दिन भरि एम्हर - ओम्हर मटरगस्ती करैत रहलाह |

एक दिन सहसा ओ घर घुरलाह | पिताकेँ हजारो टका आ एकटा औंठी देलनि |

अपन औंठी देखि गोनू झाक पिताकेँ बड़ अचरज भेलनि, ओ पुछलथिन - " अयँ हओ, ई औंठी कतs भेटलह | '

गोनू झा सम्पूर्ण रहस्य फोलि देलथिन | आब हुनकर पिताकेँ नहि रहल गेलनि, ओ कहलथिन - " गोनू, तों तs बापोकेँ नै छोड़लह! | "

- " बाबू, अपने घरमे पहिने बुद्धिक परीक्षा लेबाक चाही आ तखन बाहरक लोक पर हाथ साफ़ करबाक चाही | अहाँ हमरा आशीर्वाद दियs जे हम ऐ विद्या प्रसादे सफल होइत रही | "

- " बेटा संतानकेँ सदा पिताक आशीर्वाद रहैत छैक | तों ऐ पेशामे माहिर बनs तथा तोहर ख्याति दिन दुन्ना - राति चौगुन्ना पसरैत चलि जाओ |

गोनू झा माथ नबाकs पिताक आशीर्वाद ग्रहण कयलनि |
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